गीता 4:7

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गीता अध्याय-4 श्लोक-7 / Gita Chapter-4 Verse-7


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।7।।




हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।7।।


arjuna, whenever ritheousness is on the decline, and unrighteousness is in the ascendant, then I body Myself forth. (7).


भारत = हे भारत; यदा = जब; यदा = जब; धर्मस्य = धर्म की; ग्लानि: = हानि(और ); अधर्मस्य = अधर्म की; अभ्युत्थानम् = वृद्वि; भवति =होती है; तदा = तब तब; हि = ही; अहम् = मैं; आत्मानम् = अपने रूप को; सृजामि = रचना हूं अर्थात प्रकट करता हूं।


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अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

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