"गीता 5:12" के अवतरणों में अंतर
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
|||
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति ९: | पंक्ति ९: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
− | यहाँ यह बात कही गयी कि 'कर्मयोगी' कर्म फल से न बँधकर परमात्मा की प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और 'सकाम | + | यहाँ यह बात कही गयी कि 'कर्मयोगी' कर्म फल से न बँधकर परमात्मा की प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और 'सकाम पुरुष' फल में आसक्त होकर जन्म मरण रूप बन्धन में पड़ता है, किंतु यह नहीं बतलाया कि सांख्ययोगी का क्या होता है ? अतएव अब सांख्ययोगी की स्थिति बतलाते हैं- |
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति २३: | पंक्ति २३: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और | + | कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त होकर बँधता है ।।12।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति ३४: | पंक्ति ३४: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
− | युक्त: = निष्काम कर्मयोगी; कर्मफलम् = कर्मों के फल को; त्यक्त्वा = परमेश्वर के अर्पण करके; नैष्ठकीम् = भगवत् प्राप्ति रूप; शान्तिम् = शान्ति को इसलिये निष्काम कर्मयोग उत्तम हैं।; आन्नोति: प्राप्त होता है(और); अयुक्त: = सकामी | + | युक्त: = निष्काम कर्मयोगी; कर्मफलम् = कर्मों के फल को; त्यक्त्वा = परमेश्वर के अर्पण करके; नैष्ठकीम् = भगवत् प्राप्ति रूप; शान्तिम् = शान्ति को इसलिये निष्काम कर्मयोग उत्तम हैं।; आन्नोति: प्राप्त होता है(और); अयुक्त: = सकामी पुरुष; फले = फल में; सक्त: = आसक्त हुआ; कामकारेण = कामना के द्वारा; निबध्यते = बंधता है। |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ५४: | पंक्ति ५४: | ||
<td> | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
− | [[ | + | [[Category:गीता]] |
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:३८, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-12 / Gita Chapter-5 Verse-12
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__
</sidebar> |
||||||||
|
||||||||