"गीता 5:13" के अवतरणों में अंतर
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− | अन्त:करण जिसके वश में है, ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला | + | अन्त:करण जिसके वश में है, ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला पुरुष न कर्ता हुआ और न करवाता हुआ, बल्कि नवद्वारों वाले शरीर रूप घर में सब कर्मों को मन से त्यागकर आनन्दपूर्वक सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में स्थित रहता है ।।13।। |
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− | वशी = वश में है अन्त:करण जिसके ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला; देही = | + | वशी = वश में है अन्त:करण जिसके ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला; देही = पुरुष (तो); एव = नि:सन्देह; कुर्वन् = करता हुआ (और); कारयन् = करवाता हुआ; नवद्वारे = नवद्वारों वाले; पुरे; शरीररूप घर में;सर्वकर्माणि = सब कर्मों को; मनसा = मन से; संन्यस्य = त्यागकर अर्थात् इन्द्रिया इन्द्रियों के अर्थों बर्तती हैं ऐसे मानता हुआ; सुखम् = आनन्दपूर्वक (सच्चिदानन्दघन परमात्मा के रूवरूप में); आस्ते = स्थित रहता है। |
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१२:३८, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-13 / Gita Chapter-5 Verse-13
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