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गीता अध्याय-4 श्लोक-14 / Gita Chapter-4 Verse-14
प्रसंग-
इस प्रकार भगवान् अपने कर्मों की दिव्यता और उनका तत्व जानने का महत्व बतलाकर, अब मुमुक्षु पुरुषों के उदाहरणपूर्वक उसी प्रकार निष्काम भाव से कर्म करने के लिये <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को आज्ञा देते हैं-
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ।।14।।
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कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते– इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता ।।14।।
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Since I have no craving for the fruit of acions; actions do not contaminate Me, Even he who thus knows Me in reality is not bound by actions(14)
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कर्मफले = कर्मों के फल में; मे = मेरी; स्पृहा = स्पृहा; न = नहीं है (इसलिये) माम् = मेरे को; कर्माणि = कर्म; न लिम्पन्ति = लिपायमान नहीं करते; इति = इस प्रकार; य: = जो; माम् = मेरे को; अभिजानाति = तत्व से जानता है; स: = वह (भी); कर्मभि: = कर्मों से: = कर्मोंसे; न =नहीं; बध्यते = बंधता है।
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