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*इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?' | *इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?' | ||
− | *जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और पंचतत्त्वों- [[पृथ्वी]], जल, [[अग्नि]], [[वायु देव|वायु]] और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।' | + | *जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और पंचतत्त्वों- [[पृथ्वी]], [[जल]], [[अग्नि]], [[वायु देव|वायु]] और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।' |
*यह उपनिषद [[शैव मत]] से सम्बन्धित है; क्योंकि [[शिव]] को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है। | *यह उपनिषद [[शैव मत]] से सम्बन्धित है; क्योंकि [[शिव]] को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है। | ||
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जाबाल्युपनिषद
पशुपति ब्रह्म क्या है?
- सामवेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में मात्र तेईस मन्त्र हैं इसमें पिप्लाद के पुत्र पैप्पलादि और भगवान जाबालि के मध्य 'परमतत्त्व' से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर हैं।
- इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?'
- जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और पंचतत्त्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।'
- यह उपनिषद शैव मत से सम्बन्धित है; क्योंकि शिव को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है।
सम्बंधित लिंक
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