"शाट्यायनीयोपनिषद" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '[[श्रेणी:' to '[[category:') |
Maintenance (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '==उपनिषद के अन्य लिंक== {{उपनिषद}}' to '==सम्बंधित लिंक== {{संस्कृत साहित्य}}') |
||
(२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के २ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{menu}} | {{menu}} | ||
{{शुक्ल यजुर्वेदीय उपनिषद}} | {{शुक्ल यजुर्वेदीय उपनिषद}} | ||
− | |||
==शाट्यायनीयोपनिषद== | ==शाट्यायनीयोपनिषद== | ||
*शुक्ल यजुर्वेदीय इस [[उपनिषद]] में 'भिक्षुकोपनिषद' की भांति ही कुटीचक्र, बहूदक, हंस और परमहंस, इन चारों प्रकार के संन्यासियों की जीवनशैली और योग-साधना आदि का चित्रण है। इसमें चालीस मन्त्र हैं। | *शुक्ल यजुर्वेदीय इस [[उपनिषद]] में 'भिक्षुकोपनिषद' की भांति ही कुटीचक्र, बहूदक, हंस और परमहंस, इन चारों प्रकार के संन्यासियों की जीवनशैली और योग-साधना आदि का चित्रण है। इसमें चालीस मन्त्र हैं। | ||
पंक्ति ७: | पंक्ति ६: | ||
*विष्णुलिंग संन्यासी 'व्यक्त' और 'अव्यक्त' दो प्रकार के कहे गये हैं। | *विष्णुलिंग संन्यासी 'व्यक्त' और 'अव्यक्त' दो प्रकार के कहे गये हैं। | ||
*त्रिदण्ड धारण करने वाला संन्यासी वैष्णवलिंग माना जाता है। ऐसा संन्यासी, ब्राह्मणों का उद्धार करने वाला होता है। | *त्रिदण्ड धारण करने वाला संन्यासी वैष्णवलिंग माना जाता है। ऐसा संन्यासी, ब्राह्मणों का उद्धार करने वाला होता है। | ||
− | |||
− | |||
<br /> | <br /> | ||
− | == | + | ==सम्बंधित लिंक== |
− | {{ | + | {{संस्कृत साहित्य}} |
− | [[ | + | [[Category: कोश]] |
− | [[ | + | [[Category:उपनिषद]] |
− | [[ | + | [[Category: पौराणिक ग्रन्थ]] |
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:५७, २९ जुलाई २०१० के समय का अवतरण
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- शुक्ल यजुर्वेदीय उपनिषद
- अद्वयतारकोपनिषद|अद्वयतारकोपनिषद
- अध्यात्मोपनिषद|अध्यात्मोपनिषद
- ईशावास्योपनिषद|ईशावास्योपनिषद
- जाबालोपनिषद|जाबालोपनिषद
- तुरीयातीतोपनिषद|तुरीयातीतोपनिषद
- त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद|त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद
- निरालम्बोपनिषद|निरालम्बोपनिषद
- परमहंसोपनिषद|परमहंसोपनिषद
- पैंगलोपनिषद|पैंगलोपनिषद
- बृहदारण्यकोपनिषद|बृहदारण्यकोपनिषद
- भिक्षुकोपनिषद|भिक्षुकोपनिषद
- मन्त्रिकोपनिषद|मन्त्रिकोपनिषद
- याज्ञवल्क्योपनिषद|याज्ञवल्क्योपनिषद
- शाट्यायनीयोपनिषद|शाट्यायनीयोपनिषद
- शिवसंकल्पोपनिषद|शिवसंकल्पोपनिषद
- सुबालोपनिषद|सुबालोपनिषद
- हंसोपनिषद|हंसोपनिषद
</sidebar>
शाट्यायनीयोपनिषद
- शुक्ल यजुर्वेदीय इस उपनिषद में 'भिक्षुकोपनिषद' की भांति ही कुटीचक्र, बहूदक, हंस और परमहंस, इन चारों प्रकार के संन्यासियों की जीवनशैली और योग-साधना आदि का चित्रण है। इसमें चालीस मन्त्र हैं।
- इस उपनिषद में सर्वप्रथम मन को बन्धन और मोक्ष का कारण बताया गया है। उसके बाद विवेक, वैराग्य, शमादि, सम्पत्ति और मोक्ष-साधना का मार्ग बताया गया है। अन्त में विष्णुलिंग संन्यासी की फलश्रुति का उल्लेख किया गया है।
- विष्णुलिंग संन्यासी 'व्यक्त' और 'अव्यक्त' दो प्रकार के कहे गये हैं।
- त्रिदण्ड धारण करने वाला संन्यासी वैष्णवलिंग माना जाता है। ऐसा संन्यासी, ब्राह्मणों का उद्धार करने वाला होता है।
सम्बंधित लिंक
|
|
|