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==शिव पुराण / [[:en:Shiv Purana|Shiv Purana]]==
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==शिव पुराण / Shiv Purana==
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'शिव पुराण' का सम्बन्ध [[शैव मत]] से है।  इस [[पुराण]] में प्रमुख रूप से [[शिव]]-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
'शिव पुराण' का सम्बन्ध [[शैव मत]] से है।  इस [[पुराण]] में प्रमुख रूप से [[शिव]]-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करूणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
 
  
भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं।  त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है।  अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
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भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं।  त्रिदेवों में इन्हें संहार का [[देवता]] भी माना गया है।  अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रूद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं।  इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं।  शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
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शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं।  इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं।  शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
 
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'[[रामचरित मानस]]' में [[तुलसीदास]] ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं।  क्योंकि [[समुद्र मंथन]] के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।  तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया।  तभी से शिव नीलकंठ कहलाए।  क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
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'[[रामचरितमानस]]' में [[तुलसीदास]] ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं।  क्योंकि [[समुद्र मंथन]] के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।  तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया।  तभी से शिव नीलकंठ कहलाए।  क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
  
 
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
 
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
  
मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए।  [[वेद|वेदों]] और [[उपनिषद|उपनिषदों]] में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त '[[गायत्री मंत्र]]' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रूद्र संहिता, शतरूद्र संहिता, कोटिरूद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।
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मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए।  [[वेद|वेदों]] और [[उपनिषद|उपनिषदों]] में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त '[[गायत्री मन्त्र]]' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।
  
 
इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता।  साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।
 
इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता।  साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।
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==विद्येश्वर संहिता==
 
==विद्येश्वर संहिता==
इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।  शिव की भस्म और [[रूद्राक्ष]] का महत्त्व भी बताया गया है।  रूद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रूद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रूद्राक्ष या गोलाई रहित रूद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए।  सर्वोत्तम रूद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद  होता है।  सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर [[सूर्य]] की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए।  अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए।  इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
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इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, [[शिवलिंग]] की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।  शिव की भस्म और [[रुद्राक्ष]] का महत्त्व भी बताया गया है।  रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए।  सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद  होता है।  सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर [[सूर्य]] की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए।  अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए।  इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
==रूद्र संहिता==
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==रुद्र संहिता==
रूद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें [[नारद]] मोह की कथा, [[सती]] का दक्ष-यक्ष में देह त्याग, [[पार्वती]] विवाह, [[मदन दहन]], [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस ([[पंचामृत]]) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं।  फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें।  इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
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रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें [[नारद]] मोह की कथा, [[सती]] का [[दक्ष]]-यज्ञ में देह त्याग, [[पार्वती]] विवाह, [[मदन दहन]], [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] पुत्रों का जन्म, [[पृथ्वी]] परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस ([[पंचामृत]]) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं।  फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें।  इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
  
 
इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही '[[ब्रह्मा]]' और '[[विष्णु]]' की उत्पत्ति बताई गई है।
 
इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही '[[ब्रह्मा]]' और '[[विष्णु]]' की उत्पत्ति बताई गई है।
==शतरूद्र संहिता==
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इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-[[हनुमान]], श्वेत मुख और [[ऋषभदेव]] का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है।  शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं।  इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध '[[अर्द्धनारीश्वर]]' रूप धारण करने की कथा बताई गई है।  यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।
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==शतरुद्र संहिता==
[[कोटिरूद्र संहिता]]
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इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-[[हनुमान]], श्वेत मुख और [[ऋषभदेव]] का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है।  शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, [[जल]], [[अग्नि]], पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, [[सूर्य]] और [[चन्द्र]] अधिष्ठित हैं।  इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध '[[अर्द्धनारीश्वर]]' रूप धारण करने की कथा बताई गई है।  यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।
कोटिरूद्र संहिता में शिव के बारह [[ज्योतिर्लिंग|ज्योतिर्लिंगों]] का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं।  इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है।  
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==कोटिरुद्र संहिता==
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[[कोटिरुद्र संहिता]] में शिव के बारह [[ज्योतिर्लिंग|ज्योतिर्लिंगों]] का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं।  इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है।  
 
==उमा संहिता==
 
==उमा संहिता==
इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है।  यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है।  अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है।  'शिव पुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है।  पाप हो जाने पर प्रायश्चित के उपाय भी बताए गए हैं।  
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इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है।  यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है।  अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है।  'शिव पुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है।  पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय भी बताए गए हैं।  
 
==कैलास संहिता==
 
==कैलास संहिता==
 
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है।  गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।  
 
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है।  गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।  
पंक्ति ३२: पंक्ति ३४:
 
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।  शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।  शिव के '[[निर्गुण]]' और '[[सगुण]]' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं।  इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।  जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं  
 
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।  शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।  शिव के '[[निर्गुण]]' और '[[सगुण]]' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं।  इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।  जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं  
 
शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।
 
शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।
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==सम्बंधित लिंक==
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[[Category:पौराणिक ग्रन्थ]]
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१३:०६, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण

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शिव पुराण / Shiv Purana

गर्तेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Garteshwar Mahadev Temple, Mathura

'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।

भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।

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'रामचरितमानस' में तुलसीदास ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।

ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।

मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त 'गायत्री मन्त्र' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।

इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता। साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।

विद्येश्वर संहिता

इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है। सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए। इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।

रुद्र संहिता

रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वती विवाह, मदन दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं। फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें। इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।

इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही 'ब्रह्मा' और 'विष्णु' की उत्पत्ति बताई गई है।

शतरुद्र संहिता

इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमान, श्वेत मुख और ऋषभदेव का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है। शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं। इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध 'अर्द्धनारीश्वर' रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।

कोटिरुद्र संहिता

कोटिरुद्र संहिता में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं। इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है।

उमा संहिता

इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 'शिव पुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय भी बताए गए हैं।

कैलास संहिता

कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।

वायु संहिता

इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं। जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।

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