"सूर्योपनिषद" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
Maintenance (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '==उपनिषद के अन्य लिंक== {{उपनिषद}}' to '==सम्बंधित लिंक== {{संस्कृत साहित्य}}') |
|||
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ८ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{menu}} | {{menu}} | ||
{{अथर्ववेदीय उपनिषद}} | {{अथर्ववेदीय उपनिषद}} | ||
− | |||
==सूर्योपनिषद== | ==सूर्योपनिषद== | ||
*अथर्ववेदीय परम्परा से सम्बद्ध इस लघु उपनिषद में [[सूर्य]] और ब्रह्म की अभिन्नता दर्शाई गयी है। सूर्य और आत्मा, ब्रह्म के ही रूप हैं। सूर्य के तेज से जगत की उत्पत्ति होती है। इसमें सूर्य की स्तुति, उसका सर्वात्मक ब्रह्मत्त्व और उसकी उपासना का फल बताया गया है। | *अथर्ववेदीय परम्परा से सम्बद्ध इस लघु उपनिषद में [[सूर्य]] और ब्रह्म की अभिन्नता दर्शाई गयी है। सूर्य और आत्मा, ब्रह्म के ही रूप हैं। सूर्य के तेज से जगत की उत्पत्ति होती है। इसमें सूर्य की स्तुति, उसका सर्वात्मक ब्रह्मत्त्व और उसकी उपासना का फल बताया गया है। | ||
*सूर्यदेव समस्त जड़-चेतन जगत की आत्मा हैं। सूर्य से समस्त प्राणियों का जन्म होता है। सूर्य से ही आत्मा को तेजस्विता प्राप्त होती है-<br /> | *सूर्यदेव समस्त जड़-चेतन जगत की आत्मा हैं। सूर्य से समस्त प्राणियों का जन्म होता है। सूर्य से ही आत्मा को तेजस्विता प्राप्त होती है-<br /> | ||
− | '''ॐ भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। | + | <blockquote>'''ॐ भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात् ॥2॥''' <br /></blockquote> |
− | *[[आदित्य]] ही प्रत्यक्ष कर्मों के कर्ता हैं और वे ही साक्षात [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] ( | + | <blockquote>अर्थात जो प्रणव-रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भू:, भुव:, स्व: रूप तीनों लोकों में व्याप्त है, उस सृष्टि के उत्पादनकर्ता सवितादेव (सूर्य) के तेज का हम ध्यान करते हैं। वह हमारी बुद्धि को श्रेष्ठता प्रदान करें।</blockquote> |
− | ऐसे सूर्यदेव की उपासना करने वाले समस्त भव-बन्धनों से मुक्त होकर 'मोक्ष' को प्राप्त करते हैं। | + | *[[आदित्य]] ही प्रत्यक्ष कर्मों के कर्ता हैं और वे ही साक्षात [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] (रुद्र) हैं। वे ही [[वायु]], भूमि और जल तथा प्रकाश को उत्पन्न करने वाले हैं। वे ही पांच प्राणों में अधिष्ठित हैं। वे ही हमारे नेत्र हैं। वे ही एकाक्षर ब्रह्म- '''ॐ''' हैं।<br /> |
− | + | *ऐसे सूर्यदेव की उपासना करने वाले समस्त भव-बन्धनों से मुक्त होकर 'मोक्ष' को प्राप्त करते हैं। | |
+ | <br /> | ||
− | + | ==सम्बंधित लिंक== | |
− | == | + | {{संस्कृत साहित्य}} |
− | {{ | + | [[Category: कोश]] |
− | [[ | + | [[Category:उपनिषद]] |
− | [[ | + | [[Category: पौराणिक ग्रन्थ]] |
− | [[ | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:५८, २९ जुलाई २०१० के समय का अवतरण
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- अथर्ववेदीय उपनिषद
- अथर्वशिर उपनिषद|अथर्वशिर उपनिषद
- गणपति उपनिषद|गणपति उपनिषद
- गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद|गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद
- नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद|नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद
- नारदपरिव्राजकोपनिषद|नारदपरिव्राजकोपनिषद
- परब्रह्मोपनिषद|परब्रह्मोपनिषद
- प्रश्नोपनिषद|प्रश्नोपनिषद
- महावाक्योपनिषद|महावाक्योपनिषद
- माण्डूक्योपनिषद|माण्डूक्योपनिषद
- मुण्डकोपनिषद|मुण्डकोपनिषद
- श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद|श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद
- शाण्डिल्योपनिषद|शाण्डिल्योपनिषद
- सीता उपनिषद|सीता उपनिषद
- सूर्योपनिषद|सूर्योपनिषद
</sidebar>
सूर्योपनिषद
- अथर्ववेदीय परम्परा से सम्बद्ध इस लघु उपनिषद में सूर्य और ब्रह्म की अभिन्नता दर्शाई गयी है। सूर्य और आत्मा, ब्रह्म के ही रूप हैं। सूर्य के तेज से जगत की उत्पत्ति होती है। इसमें सूर्य की स्तुति, उसका सर्वात्मक ब्रह्मत्त्व और उसकी उपासना का फल बताया गया है।
- सूर्यदेव समस्त जड़-चेतन जगत की आत्मा हैं। सूर्य से समस्त प्राणियों का जन्म होता है। सूर्य से ही आत्मा को तेजस्विता प्राप्त होती है-
ॐ भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात् ॥2॥
अर्थात जो प्रणव-रूप में सच्चिदानन्द परमात्मा भू:, भुव:, स्व: रूप तीनों लोकों में व्याप्त है, उस सृष्टि के उत्पादनकर्ता सवितादेव (सूर्य) के तेज का हम ध्यान करते हैं। वह हमारी बुद्धि को श्रेष्ठता प्रदान करें।
- आदित्य ही प्रत्यक्ष कर्मों के कर्ता हैं और वे ही साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश (रुद्र) हैं। वे ही वायु, भूमि और जल तथा प्रकाश को उत्पन्न करने वाले हैं। वे ही पांच प्राणों में अधिष्ठित हैं। वे ही हमारे नेत्र हैं। वे ही एकाक्षर ब्रह्म- ॐ हैं।
- ऐसे सूर्यदेव की उपासना करने वाले समस्त भव-बन्धनों से मुक्त होकर 'मोक्ष' को प्राप्त करते हैं।
सम्बंधित लिंक
|
|
|