ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
(२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ४ अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
− | {{menu}}<br /> | + | {{menu}} |
| <table class="gita" width="100%" align="left"> | | <table class="gita" width="100%" align="left"> |
| <tr> | | <tr> |
पंक्ति ३१: |
पंक्ति ३१: |
| |- | | |- |
| | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | |
− | कौन्तेय = हे अर्जुन ; एतै: = इन ; त्रिभि: = तीनों ; तमोद्वारै: = नरक के द्वारों से ; विमुक्त: = मुक्त हुआ ; नर: = पुरूष ; आत्मन: = अपने ; श्रेय: = कल्याण का ; आचरति = आचरण करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = जाता हे अर्थात् मेरे को प्राप्त होता है ; | + | कौन्तेय = हे अर्जुन ; एतै: = इन ; त्रिभि: = तीनों ; तमोद्वारै: = नरक के द्वारों से ; विमुक्त: = मुक्त हुआ ; नर: = पुरुष ; आत्मन: = अपने ; श्रेय: = कल्याण का ; आचरति = आचरण करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = जाता हे अर्थात् मेरे को प्राप्त होता है ; |
| |- | | |- |
| |} | | |} |
पंक्ति ५१: |
पंक्ति ५१: |
| <td> | | <td> |
| {{गीता अध्याय}} | | {{गीता अध्याय}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{गीता2}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{महाभारत}} |
| </td> | | </td> |
| </tr> | | </tr> |
| </table> | | </table> |
− | [[category:गीता]] | + | [[Category:गीता]] |
| __INDEX__ | | __INDEX__ |
१२:२४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-16 श्लोक-22 / Gita Chapter-16 Verse-22
एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: ।
आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ।।22।।
|
हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परमगति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है ।।22।।
|
Freed from these three gates of hell, man works his own salvation and thereby attains the supreme goal i.e., God. (22)
|
कौन्तेय = हे अर्जुन ; एतै: = इन ; त्रिभि: = तीनों ; तमोद्वारै: = नरक के द्वारों से ; विमुक्त: = मुक्त हुआ ; नर: = पुरुष ; आत्मन: = अपने ; श्रेय: = कल्याण का ; आचरति = आचरण करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = जाता हे अर्थात् मेरे को प्राप्त होता है ;
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|
|
महाभारत |
---|
| महाभारत संदर्भ | | | | महाभारत के पर्व | |
|
|