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१२:३२, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-36 / Gita Chapter-1 Verse-36
प्रसंग-
स्वजनों को मारना सब प्रकार से हानिकारक बतलाकर अब <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अपना मत प्रकट कर रहे हैं-
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीतिस्याज्जनार्दन ।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: ।।36।।
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हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, जनार्दन, भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है ।" style="color:green">
जनार्दन</balloon> ! <balloon link="index.php?title=धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने ।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">धृतराष्ट्र</balloon> के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा ।।36।।
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Krishna, how can we hope to be happy slaying the sons of Dhrtarastra; killing these deseradoes sin will surely take hold of us.(36)
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धार्तराष्ट्रान् = धृतराष्ट्र के पुत्रों के; निहत्य = मारकर (भी); न: = हमें; का =क्या; प्रीति: =प्रसन्नता; स्यात् = होगी; एतान् = इन; आततायिन: = आततायियों को; हत्वा = मारकर; अस्मान् = हमें; पापम् = पाप; एव = ही; आश्रयेत् =लगेगा
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