"गीता 14:1" के अवतरणों में अंतर
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− | '''चतुर्दशोऽध्याय | + | '''चतुर्दशोऽध्याय-''' |
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− | इस अध्याय में सत्व, रज और तम- इन तीनों गुणों के स्वरूप का, उनके कार्य, कारण और शक्ति का; तथा वे किस प्रकार किस अवस्था में जीवात्मा को कैसे बन्धन में डालते हैं और किस प्रकार इनसे छूटकर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो सकता है; तथा इन तीनों गुणों से अतीत होकर परमात्मा को प्राप्त मनुष्य के क्या लक्षण है ? | + | इस अध्याय में सत्व, रज और तम- इन तीनों गुणों के स्वरूप का, उनके कार्य, कारण और शक्ति का; तथा वे किस प्रकार किस अवस्था में जीवात्मा को कैसे बन्धन में डालते हैं और किस प्रकार इनसे छूटकर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो सकता है; तथा इन तीनों गुणों से अतीत होकर परमात्मा को प्राप्त मनुष्य के क्या लक्षण है? इन्हीं त्रिगुण-संबंधी बातों का विवेचन किया गया है । पहले साधनकाल में रज और तम का त्याग करके सत्वगुण को ग्रहण करना और अन्त में सभी गुणों से सर्वथा संबंध त्याग देना चाहिये, इसको समझाने के लिये उन तीनों गुणों का विभाग पूर्वक किया गया है । इसलिये इस अध्याय का नाम 'गुणत्रयविभाग योग' रखा गया है । |
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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तेरहवें अध्याय में वर्णित ज्ञान को ही स्पष्ट करके चौदहवें अध्याय में विस्तारपूर्वक समझाना है, इसलिये पहले भगवान् दो श्लोकों में उस ज्ञान का महत्व बतलाकर उसके पुन: वर्णन की प्रतिज्ञा करते हैं- | तेरहवें अध्याय में वर्णित ज्ञान को ही स्पष्ट करके चौदहवें अध्याय में विस्तारपूर्वक समझाना है, इसलिये पहले भगवान् दो श्लोकों में उस ज्ञान का महत्व बतलाकर उसके पुन: वर्णन की प्रतिज्ञा करते हैं- | ||
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+ | '''श्रीभगवानुवाच-'''<br/> | ||
'''परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् ।'''<br/> | '''परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् ।'''<br/> | ||
'''यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: ।।1।।''' | '''यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: ।।1।।''' | ||
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१२:२०, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-14 श्लोक-1 / Gita Chapter-14 Verse-1
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