"गीता 14:22" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | इस प्रकार | + | इस प्रकार <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के पूछने पर भगवान् उनके प्रश्नों में से 'लक्षण' और 'आचरण' विषयक दो प्रश्नों का उत्तर चार श्लोकों द्वारा देते हैं – | ||
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− | + | श्रीभगवानुवाच-<br/> | |
'''प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।'''<br/> | '''प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।'''<br/> | ||
'''न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ।।22।।''' | '''न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ।।22।।''' | ||
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'''श्रीभगवान् बोले-''' | '''श्रीभगवान् बोले-''' | ||
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− | हे अर्जुन ! जो | + | हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है ।।22।। |
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− | पाण्डव = हे अर्जुन (जो | + | पाण्डव = हे अर्जुन (जो पुरुष) ; प्रकाशम् = कार्यरूप प्रकाश को ; च = और ; प्रवृत्तिम् = रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को ; द्वेष्टि = बुरा समझता है ; च = और ; न = न ; च = तथा ; मोहम् = तमोगुण के कार्यरूप मोहको ; एव = भी ; न = न (तो) ; संप्रवृत्तानि = प्रवृत्त होने पर ; निवृत्तानि = निवृत्त होने पर (उनकी) ; काक्ष्डति = आकाक्ष्डा करता है| |
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१२:२१, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-14 श्लोक-22 / Gita Chapter-14 Verse-22
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