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− | भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा सुनकर अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं- तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृनथ | + | भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा सुनकर अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं- तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृनथ पितामहान- |
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'''सेनयोरूभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ।।24।।'''<br/> | '''सेनयोरूभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ।।24।।'''<br/> | ||
'''भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् ।'''<br/> | '''भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् ।'''<br/> | ||
− | '''उवाच पार्थ | + | '''उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति ।।25।।''' |
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संजय</balloon> बोले''' | संजय</balloon> बोले''' | ||
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− | हे <balloon link="index.php?title=धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के | + | हे <balloon link="index.php?title=धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने । |
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धृतराष्ट्र</balloon> ! <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | धृतराष्ट्र</balloon> ! <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | ||
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भीष्म</balloon> और <balloon link="index.php?title=द्रोणाचार्य" title="द्रोणाचार्य कौरव और पांडवो के गुरु थे । कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी । अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | भीष्म</balloon> और <balloon link="index.php?title=द्रोणाचार्य" title="द्रोणाचार्य कौरव और पांडवो के गुरु थे । कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी । अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | ||
− | द्रोणाचार्य</balloon> के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन <balloon link="index.php?title=कौरव" title="गान्धारी के सौ पुत्र कौरव कहलाते है । दुर्योधन इन सबमें सबसे | + | द्रोणाचार्य</balloon> के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन <balloon link="index.php?title=कौरव" title="गान्धारी के सौ पुत्र कौरव कहलाते है । दुर्योधन इन सबमें सबसे बड़ा था । |
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कौरवों</balloon> को देख ।।24-25।। | कौरवों</balloon> को देख ।।24-25।। | ||
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− | भारत = हे धृतराष्ट्र; गुडाकेशेन =अर्जुन द्वारा; एवम् = इस प्रकार; उक्त: = कहे हुए; हृषीकेश: = महाराज श्रीकृष्ण चन्द्र ने; उभयो: = दोनों; सेनयो: = सेनाओं के; मध्ये =बीच में; भीष्मद्रोणप्रमुखत: = भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने; च = और; सर्वेषाम् = संपूर्ण; महीक्षिताम् = राजाओं के सामने; रथोत्तमम् = उत्तम रथ को; स्थापयित्वा =खड़ा करके; इति = ऐसे; उवाच =कहा (कि ); एतान् =इन; समवेतान् =इकट्ठे हुए; | + | भारत = हे धृतराष्ट्र; गुडाकेशेन =अर्जुन द्वारा; एवम् = इस प्रकार; उक्त: = कहे हुए; हृषीकेश: = महाराज श्रीकृष्ण चन्द्र ने; उभयो: = दोनों; सेनयो: = सेनाओं के; मध्ये =बीच में; भीष्मद्रोणप्रमुखत: = भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने; च = और; सर्वेषाम् = संपूर्ण; महीक्षिताम् = राजाओं के सामने; रथोत्तमम् = उत्तम रथ को; स्थापयित्वा =खड़ा करके; इति = ऐसे; उवाच =कहा (कि ); एतान् =इन; समवेतान् =इकट्ठे हुए; कुरुन् = कौरवों को; पश्य = देख |
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१२:३२, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-1 श्लोक-24,25 / Gita Chapter-1 Verse-24,25
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