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− | यहाँ यदि यह पूछा जाय कि आप त्रिलोकी के राज्य के लिये भी उनको मारना क्यों | + | यहाँ यदि यह पूछा जाय कि आप त्रिलोकी के राज्य के लिये भी उनको मारना क्यों नहीं चाहते, तो इस पर <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अपने सम्बन्धियों को मारने में लाभ का अभाव और पाप की संभावना बतलाकर अपनी बात को पुष्ट करते हैं- | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अपने सम्बन्धियों को मारने में लाभ का अभाव और पाप की संभावना बतलाकर अपनी बात को पुष्ट करते हैं- | ||
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− | हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।35।। | + | हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, जनार्दन, भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green"> |
+ | मधुसूदन</balloon> ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर [[पृथ्वी]] के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।35।। | ||
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०७:४७, २७ दिसम्बर २०११ के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-1 श्लोक-35 / Gita Chapter-1 Verse-35
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