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१२:१७, ७ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-2 श्लोक-10 / Gita Chapter-2 Verse-10

प्रसंग-


अर्जुन को अधिकारी समझकर उसके शोक और मोह को सदा के लिये नष्ट करने के उद्देश्य से भगवान् पहले नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन पूर्वक सांख्ययोग की दृष्टि से भी युद्ध करना कर्तव्य है, ऐसा प्रतिपादन करते हुए सांख्यनिष्ठा का वर्णन करते हैं-


'मुवाच हृषीकेश: प्रहसत्रिव भारत ।'
'सेनयोरूभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: ।।10।।'




हे भरतवंशी धृतराष्द्र ! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए-से यह वचन बोले ।।10।।


Then, O dhrtarastra, sri krsna, as if smiling, addressed the following words to sorrowing arjuna, in the midst of the two armies. (10)


भारत = हे भरतवंशी धृतराष्ट ; ह्रषीकेश: = श्रीकृष्ण महाराजने ; उभयो: = दोनों ; सेनयो: = सेनाओंके ; मध्ये = बीचमें ; तम् = उस ; विषीदन्तम् = शोकयुक्त अर्जुनको ; प्रहसन् इव = हंसते हुए-से ; इदम् = यह ; वच: = वचन ; उवाच = कहा ;

अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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