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०६:१३, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-2 श्लोक-14 / Gita Chapter-2 Verse-14

प्रसंग-


इन सबको सहन करने से क्या लाभ होगा ? इस जिज्ञासा पर कहते हैं-


'मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा:।'
'आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।14।।'




हे कुन्ती पुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति, विनाशशील और अनित्य हैं; इसलिये हे भारत ! उनको तू सहन कर ।।14।।


O son of kunti, the contacts between the senses and their objects, which give rise to the feeling of heat and cold, pleasure and pain etc., are transitory and fleeting; therefore, arjuna, ignore them.(14)


कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्र ; शीतोष्णसुखदु:खदा: = दु:खको देने वाले ; मात्रास्पर्शा: = विषयोंके संयोग ; तान् = उनको (तूं) ; तु = तो ; आगमापायिन: = क्षणभग्डुंर (और) ; अनित्या: = अनित्य हैं (इसलिये) ; भारत = हे भरतवंशी अर्जुन ; तितिक्षस्व = सहन कर ;


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अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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