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०४:३५, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-14 / Gita Chapter-2 Verse-14
प्रसंग-
इन सबको सहन करने से क्या लाभ होगा ? इस जिज्ञासा पर कहते हैं-
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा:।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।14।।
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हे कुन्ती पुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति, विनाशशील और अनित्य हैं; इसलिये हे भारत ! उनको तू सहन कर ।।14।।
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O son of kunti, the contacts between the senses and their objects, which give rise to the feeling of heat and cold, pleasure and pain etc., are transitory and fleeting; therefore, arjuna, ignore them.(14)
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कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्र ; शीतोष्णसुखदु:खदा: = दु:खको देने वाले ; मात्रास्पर्शा: = विषयोंके संयोग ; तान् = उनको (तूं) ; तु = तो ; आगमापायिन: = क्षणभग्डुंर (और) ; अनित्या: = अनित्य हैं (इसलिये) ; भारत = हे भरतवंशी अर्जुन ; तितिक्षस्व = सहन कर ;
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