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०४:३१, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-2 श्लोक-3 / Gita Chapter-2 Verse-3
प्रसंग-
भगवान् के इस प्रकार कहने पर गुरूजनों के साथ किये जाने वाले युद्ध को अनुचित सिद्ध करते हुए दो श्लोकों में अर्जुन अपना निश्चय प्रकट करते हैं-
क्लैव्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप ।।3।।
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इसलिये हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे परन्तप ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।3।।
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Yield not to unmanliness, arjuna; ill does it become you. shaking off this paltry faint-heartedness stand up, O scorcher of enemies.(3)
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पार्थ = हे अर्जुन ; क्लैव्यम् = नपुंसकताको ; मा स्म गम: = मत प्राप्त हो; एतत् = यह ; त्वयि = तेरेमें ; न उपपद्यते = योग्य नहीं है ; परंतप = हे परंतप ; क्षुद्रम् = तुच्छ ; ह्रदय दौर्बल्यम् = ह्रदयकी दुर्बलताको ; त्यक्त्वा = त्यागकर ; उत्तिष्ठ = युद्ध के लिये खडा हो ;
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