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उपर्युक्त श्लोक में भगवान् ने युद्ध का फल राज्य सुख या स्वर्ग की प्राप्ति तक बतलाया, किंतु अर्जुन ने तो पहले ही कह दिया था कि इस लोक के राज्य की तो बात ही क्या है, मैं तो त्रिलोकी के राज्य के लिये भी अपने कुल का नाश नहीं करना चाहता । अत: जिसे राज्य सुख और स्वर्ग की इच्छा न हो उसको किस प्रकार युद्ध करना चाहिये, यह बात अगले श्लोक में बतलायी जाती है-
 
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१३:०४, १२ नवम्बर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-2 श्लोक-37 / Gita Chapter-2 Verse-37

प्रसंग-


उपर्युक्त श्लोक में भगवान् ने युद्ध का फल राज्य सुख या स्वर्ग की प्राप्ति तक बतलाया, किंतु अर्जुन ने तो पहले ही कह दिया था कि इस लोक के राज्य की तो बात ही क्या है, मैं तो त्रिलोकी के राज्य के लिये भी अपने कुल का नाश नहीं करना चाहता । अत: जिसे राज्य सुख और स्वर्ग की इच्छा न हो उसको किस प्रकार युद्ध करना चाहिये, यह बात अगले श्लोक में बतलायी जाती है-


हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: ।।37।।




या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा । इस कारण हे अर्जुन ! तू युद्ध के लिये निश्चय करके खड़ा हो जा ।।37।।


Die, and you will win heaven; conquer, and you enjoy sovereingnty of the earth; therefore , stand up, Arjuna, determined to fight. (37)


वा = या (तो) ; हत: = मरकर ; स्वर्गम् = स्वर्गको ; प्राप्स्यसि = प्राप्त होगा ; वा = अथवा ; जित्वा = जीतकर ; महीम् = पृथिवीको ; भोक्ष्यसे = भोगेगा ; तस्मात् = इससे ; कौन्तेय = हे अर्जुन ; युद्धय = युद्धके लिये ; कृतनिश्र्चय: = निश्र्चयवाला होकर ; उत्तिष्ठ = खडा हो



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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