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०४:५१, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-2 श्लोक-59 / Gita Chapter-2 Verse-59
प्रसंग-
आसक्ति का नाश और इन्द्रिय संयम नहीं होने से क्या हानि है ? इस पर कहते हैं-
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन: ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ।।59।।
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इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरूष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परंतु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती ।।59।।
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Sense-objects turn away from him, who does not enjoy them with his senses; but the taste for them persists. This relish also disappears in the case of the man of stable mind when he sees the supreme
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निराहारस्य = (इन्द्रियोंके द्वारा) विषयोंको न ग्रहण करने वाले ; देहिन: = पुरूषके (भी) (केवल) ; विषया: = विषय (तो) ; विनिवर्तन्ते = निवृत्त हो जाते हैं (परन्तु) ; रसवर्जम् = राग नहीं (निवृत्त होता) (और) ; अस्य = इस पुरूषका (तो) ; रस: = राग ; अपि = भी ; परम् = परमात्माको ; छष्टा = साक्षात् करके ; निवर्तते = निवृत्त हो जाता है
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