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अब भगवान् अपने गुण, प्रभाव के सहित समग्र स्वरूप का तथा विविध प्रकारों से युक्त भक्तियोग का वर्णन करने के लिये सातवें अध्याय का आरम्भ करते हैं और सबसे पहले दो श्लोकों में <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
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¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को उसे सावधानी के साथ सुनने के लिये प्रेरणा करके ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करते हैं-
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'परमात्मा के निर्गुण निराकार तत्व के प्रभाव, माहात्म्य आदि के रहस्यसहित पूर्णरूप से जान लेने का नाम 'ज्ञान' और सगुण निराकार एवं साकार तत्व के लीला, रहस्य महत्व, गुण और प्रभाव आदि के पूर्ण ज्ञान का नाम 'विज्ञान' है । इस ज्ञान और विज्ञान के सहित भगवान् के स्वरूप को जानना ही समग्र भगवान् को जानना हैं । इस अध्याय में इसी समग्र भगवान् के स्वरूप का, उसके जानने वाले अधिकारियों का और साधनों का वर्णन है- इसीलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञान विज्ञान' रखा गया है ।
 
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'''मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: ।'''<br/>
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'''असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ।।1।।'''
 
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'''श्रीभगवान् बोले-'''
 
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हिन्दी टॅक्स्ट
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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन ।।1।।
  
 
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'''Sri Bhagavan said:'''
 
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English text.
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Arjuna, now listen how with the mind attached to me through exclusive  love and practicing yoga with absolute dependence on me, you will know me the repository of all power, strength and glory and other attributes, the universal soul in entirety and without any shadow of doubt.
 
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यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
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(अनन्यभाव से) ; मदाश्रय: = मेरे परायण ; योगम् = योग में ; युच्चन = लगा हुआ ; माम् = मुझको ; समग्रम् = संपूर्ण विभूति बल ऐश्र्वर्यादि गुणों से युक्त सबका आत्मरूप ; यथा = जिस प्रकार ; संसशयम् = संशयरहित ; ज्ञास्यसि = जानेगा ; तत् = उसको ; श्रृणु = सुन 
 
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१२:४६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

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गीता अध्याय-7 श्लोक-1 / Gita Chapter-7 Verse-1

सप्तमोऽध्याय: प्रसंग-


अब भगवान् अपने गुण, प्रभाव के सहित समग्र स्वरूप का तथा विविध प्रकारों से युक्त भक्तियोग का वर्णन करने के लिये सातवें अध्याय का आरम्भ करते हैं और सबसे पहले दो श्लोकों में <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को उसे सावधानी के साथ सुनने के लिये प्रेरणा करके ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करते हैं- 'परमात्मा के निर्गुण निराकार तत्व के प्रभाव, माहात्म्य आदि के रहस्यसहित पूर्णरूप से जान लेने का नाम 'ज्ञान' और सगुण निराकार एवं साकार तत्व के लीला, रहस्य महत्व, गुण और प्रभाव आदि के पूर्ण ज्ञान का नाम 'विज्ञान' है । इस ज्ञान और विज्ञान के सहित भगवान् के स्वरूप को जानना ही समग्र भगवान् को जानना हैं । इस अध्याय में इसी समग्र भगवान् के स्वरूप का, उसके जानने वाले अधिकारियों का और साधनों का वर्णन है- इसीलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञान विज्ञान' रखा गया है ।


मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ।।1।।



श्रीभगवान् बोले-


हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन ।।1।।

Sri Bhagavan said:


Arjuna, now listen how with the mind attached to me through exclusive love and practicing yoga with absolute dependence on me, you will know me the repository of all power, strength and glory and other attributes, the universal soul in entirety and without any shadow of doubt.


(अनन्यभाव से) ; मदाश्रय: = मेरे परायण ; योगम् = योग में ; युच्चन = लगा हुआ ; माम् = मुझको ; समग्रम् = संपूर्ण विभूति बल ऐश्र्वर्यादि गुणों से युक्त सबका आत्मरूप ; यथा = जिस प्रकार ; संसशयम् = संशयरहित ; ज्ञास्यसि = जानेगा ; तत् = उसको ; श्रृणु = सुन



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

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    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

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