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०८:१८, १९ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-7 श्लोक-2 / Gita Chapter-7 Verse-2
प्रसंग-
अपने समग्र रूप से ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करके अब भगवान् अपने उस स्वरूप का तत्व जानने की दुर्लभता का प्रतिपादन करते हैं-
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ।।2।।
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मैं तेरे लिये इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता ।।2।।
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I shall now declare unto you in full this knowledge both phenomenal and noumenal, by knowing which there shall remain nothing further to be known. (2)
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अहम् = मैं ; ते = तेरे लिये ; इदम् = इस ; सविज्ञानम् = रहस्यसहित ; ज्ञानम् = तत्त्वज्ञान को ; अशेषत: = संपूर्णता से ; वक्ष्यामि = कहूंगा (कि) ; यत् = जिसको ; ज्ञात्वा = जान कर ; इह = संसार में ; भूय: = फिर ; अन्यत् = और कुछ भी ; ज्ञातव्यम् = जानने योग्य ; न अवशिष्यते = शेष नहीं रहता है
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