गीता 2:53

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गीता अध्याय-2 श्लोक-53 / Gita Chapter-2 Verse-53

प्रसंग-


पूर्वश्लोकों में भगवान् ने यह बात कही कि जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी दलदल को सर्वथा पार कर जायेगी तथा तुम इस लोक और परलोक के समस्त भोगों से विरक्त हो जाओगे, तुम्हारी बुद्धि परमात्मा में निश्चल ठहर जायेगी, जब तुम परमात्मा को प्राप्त हो जाओगे । इस पर परमात्मा को प्राप्त स्थित प्रज्ञ, सिद्ध योगी के लक्षण और आचरण जानने की इच्छा से <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> पूछते हैं


श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ।।53।।




भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जायेगी, तब तू योग को प्राप्त हो जायेगा अर्थात् तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जायेगा ।।53।।


When your intellect, confused by hearing conflicting statements, will rest, steady and undistracted (in meditation) on God, you will then attain Yoga (for lasting union with god).(53)


यदा = जब ; ते = तेरी ; श्रुतिविप्रतिपन्ना = प्रकारके सिद्धान्तोंको सुननेसे विचलित हुई ; बुद्धि: = बुद्धि ; समाधौ = परमात्माके स्वरूपमें ; अचला = अचल (और) ; निश्र्चला = स्थिर ; स्थास्यति = ठहर जायगी ; यदा = तब (तूं) ; योगम् = समत्वरूप योगको ; अवाप्स्यसि = प्राप्त होगा ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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