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१०:११, ५ जनवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-4 / Gita Chapter-6 Verse-4
प्रसंग-
परमपद की प्राप्ति हेतु रूप योगारूढ अवस्था का वर्णन करके अब उसे प्राप्त करने के लिये उत्साहित करते हुए भगवान् मनुष्य का कर्तव्य बतलाते हैं-
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ।।4।।
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जिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरूष योगारूढ कहा जाता है ।।4।।
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attachment either for the objects of senses or for actions, and has renounced all thoughts of the world, he is said to have climbed to the heights of yoga. (4)
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यदा = जिस काल में; न = न =(तो); इन्द्रियार्थेंषु = इन्द्रिया के भोगों मे; अनुषज्जते = आसक्त होता है (तथा ); न = न कर्मसु = कर्मों में; अनुषज्जते = आसक्त होता है; तदा = उस काल में; सर्वसंकल्प संन्यासी = सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरूष; योगारूढ़: = योगारूढ़; उच्चते =कहा जाता है;
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