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इस बारहवें अध्याय में अनेक प्रकार के साधनों सहित भगवान् की भक्ति का वर्णन करके भगवद्भक्तों के लक्षण बतलाये गये हैं इसका उपक्रम और उपसंहार भगवान् की भक्ति में ही हुआ है । केवल तीन श्लोकों में ज्ञान के साधन का वर्णन है, वह भी भगवद्भक्ति और ज्ञानयोग की परस्पर तुलना करने के लिये ही है; अतएव इस अध्याय का नाम 'भक्तियोग' रखा गया है । <br /> | इस बारहवें अध्याय में अनेक प्रकार के साधनों सहित भगवान् की भक्ति का वर्णन करके भगवद्भक्तों के लक्षण बतलाये गये हैं इसका उपक्रम और उपसंहार भगवान् की भक्ति में ही हुआ है । केवल तीन श्लोकों में ज्ञान के साधन का वर्णन है, वह भी भगवद्भक्ति और ज्ञानयोग की परस्पर तुलना करने के लिये ही है; अतएव इस अध्याय का नाम 'भक्तियोग' रखा गया है । <br /> | ||
− | '''प्रसंग-''' निर्गुण-निराकार और सगुण-साकार की उपासना करने वाले दोनों प्रकार के उपासकों में उत्तम उपासक कौन है, इसी जिज्ञासा के अनुसार | + | |
+ | '''प्रसंग-''' | ||
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+ | निर्गुण-निराकार और सगुण-साकार की उपासना करने वाले दोनों प्रकार के उपासकों में उत्तम उपासक कौन है, इसी जिज्ञासा के अनुसार <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> पूछ रहे हैं- | ||
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− | '''अर्जुन उवाच:''' | + | '''अर्जुन उवाच:'''<br/> |
'''एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।'''<br/> | '''एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।'''<br/> | ||
'''ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: ।।1।।''' | '''ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: ।।1।।''' | ||
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'''अर्जुन बोले:''' | '''अर्जुन बोले:''' | ||
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− | जो अनन्य प्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन-ध्यान में लगे रहकर आप सगुणरूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार | + | जो अनन्य प्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन-ध्यान में लगे रहकर आप सगुणरूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को ही अतिश्रेष्ठ भाव से भजते हैं- उन दोनों प्रकार के उपासकों में अति उत्तम योगवेत्ता कौन हैं ? ।।1।। |
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१२:१७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-12 श्लोक-1 / Gita Chapter-12 Verse-1
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