"गीता 18:10" के अवतरणों में अंतर
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− | उपर्युक्त प्रकार से सात्त्विक त्याग करने वाले पुरुष का निषिद्ध और काम्य कर्मों को स्वरूप से छोड़ने में और कर्तव्य कर्मों के करने में कैसा भाव रहता है, इस जिज्ञासा पर सात्त्विक त्यागी | + | उपर्युक्त प्रकार से सात्त्विक त्याग करने वाले पुरुष का निषिद्ध और काम्य कर्मों को स्वरूप से छोड़ने में और कर्तव्य कर्मों के करने में कैसा भाव रहता है, इस जिज्ञासा पर सात्त्विक त्यागी पुरुष की अन्तिम स्थिति के लक्षण बतलाते हैं- |
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− | अकुशलम् = अकल्याण कारक ; कर्म = कर्म से (तो) ; न द्वेष्टि = द्वेष नहीं करता है (और) ; कुशले = कल्याणकारक कर्म में ; न अनुषज्जते = आसक्त नहीं होता है ; सत्त्वसमाविष्ट: = शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त हुआ | + | अकुशलम् = अकल्याण कारक ; कर्म = कर्म से (तो) ; न द्वेष्टि = द्वेष नहीं करता है (और) ; कुशले = कल्याणकारक कर्म में ; न अनुषज्जते = आसक्त नहीं होता है ; सत्त्वसमाविष्ट: = शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त हुआ पुरुष ; छिन्नसंशय: = संशयरहित ; मेधावी ; ज्ञानवान् (और) ; त्यागी = त्यागी है ; |
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१२:२७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-10 / Gita Chapter-18 Verse-10
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