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१२:२८, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-21 / Gita Chapter-18 Verse-21
प्रसंग-
अब राजस ज्ञान के लक्षण बतलाते हैं-
पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृग्विधान् ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ।।21।।
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किन्तु जो ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान ।।21।।
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That, however, by which man cognize many existences of various kinds as apart from one another in all beings, know that knowledge to be passion (Rajasika).(21)
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तु = और ; यत् = जो ; ज्ञानम् = ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य ; सर्वेषु = संपूर्ण ; भूतेषु = भूतों में ; पृथग्विधान् = भिन्न भिन्न प्रकार के ; नानाभावान् = अनेक भावों को ; पृथक्त्वेन = न्यारा न्यारा करके ; वेत्ति = जानता है ; तत् = उस ; ज्ञानम् = ज्ञान को (तूं) ; राजसम् = राजस ; विद्धि = जान ;
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