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− | च = तथा (हे अर्जुन) ; य: = जो (पुरूष) ; इमम् = इस ; धर्म्यम् = धर्ममय ; आवयों: = हम दोनों के ; संवादम = संवादरूप गीताशास्त्रको ; अध्येष्यते = नित्य पाठ करेगा ; तेन = उसके द्वारा ; अहम् = मैं ; ज्ञानयज्ञेन = ज्ञानयज्ञसे ; इष्ट: = पूजित ; स्याम् = होऊंगा ; इति = ऐसा ; मे = मेरा ; मति: = मत है | + | च = तथा (हे अर्जुन) ; य: = जो (पुरुष) ; इमम् = इस ; धर्म्यम् = धर्ममय ; आवयों: = हम दोनों के ; संवादम = संवादरूप गीताशास्त्रको ; अध्येष्यते = नित्य पाठ करेगा ; तेन = उसके द्वारा ; अहम् = मैं ; ज्ञानयज्ञेन = ज्ञानयज्ञसे ; इष्ट: = पूजित ; स्याम् = होऊंगा ; इति = ऐसा ; मे = मेरा ; मति: = मत है |
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१२:३१, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-70 / Gita Chapter-18 Verse-70
प्रसंग-
इस प्रकार उपर्युक्त दो श्लोकों में गीताशास्त्र का श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवद्भक्तों में विस्तार करने का फल और माहात्म्य बतलाया; किन्तु सभी मनुष्य इस कार्य को नहीं कर सकते, इसका अधिकारी तो कोई विरला ही होता है । इसलिये अब गीताशास्त्र के अध्ययन का माहात्म्य बतलाते हैं
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति मे मति: ।।70।।
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जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद रूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊँगा- ऐसा मेरा मत है ।।70।।
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And I declare that he who studies this sacred conversation worships Me by his intelligence.(70)
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च = तथा (हे अर्जुन) ; य: = जो (पुरुष) ; इमम् = इस ; धर्म्यम् = धर्ममय ; आवयों: = हम दोनों के ; संवादम = संवादरूप गीताशास्त्रको ; अध्येष्यते = नित्य पाठ करेगा ; तेन = उसके द्वारा ; अहम् = मैं ; ज्ञानयज्ञेन = ज्ञानयज्ञसे ; इष्ट: = पूजित ; स्याम् = होऊंगा ; इति = ऐसा ; मे = मेरा ; मति: = मत है
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