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०१:०७, ५ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-26 / Gita Chapter-6 Verse-26
प्रसंग-
चित्त को सब ओर हटाकर एक परमात्मा में ही स्थिर करने से क्या होगा, इस पर कहते हैं-
यतो यतो निश्चरति मनश्चज्चलमस्थिरम् ।
ततस्ततो नियम्येतदात्मन्येव वशं नयेत् ।।26।।
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यह स्थिर न रहने वाला और चंचल मन जिस-जिस शब्दादि विषय के निमित्त से संसार में विचरता है, उस विषय से रोककर यानी हटाकर इसे बार-बार परमात्मा में निरूद्ध करे ।।26।।
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Drawing back the restless and fidgety mind from all those objects after which it runs, he should repeatedly fix it on God. (26)
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एतत् = यह; अस्थिरम् = स्थिर न रहने वाला(और); चज्जलम् = चज्जल; यत: यत: = जिस जिस कारण से; निश्चरति = सांसारिक पदार्थों में विचरता है; तत: = उस;तत: = उससे; नियम्य =रोककर (बारम्बार ); आत्मनि = परमात्मा में; एव = ही; वशम् = निरोध; नयेत् = करे;
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