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गीता अध्याय-6 श्लोक-28 / Gita Chapter-6 Verse-28
प्रसंग-
इस प्रकार अभेद भाव से साधन करने वाले सांख्ययोगी के ध्यान का और उसके फल का वर्णन करके अब उस साधक के व्यवहार काल की स्थिति का वर्णन करते हैं-
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष: ।
सुखेन ब्रह्रासंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ।।28।।
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वह पाप रहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्रा परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनन्द का अनुभव करता है ।।28।।
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Steady in the Self, being freed from all material contamination, the yogi achieves the highest perfectional stage of happiness in touch with the Supreme Consciousness. (28)
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विगतकल्मष: = पापरहित; योगी =योगी; एवम् = इस प्रकार;सदा =निरन्तर; आत्मानम् = आत्मा को; युज्जन् = (परमात्मा में) लगाता हुआ; सुखेन =सुख्य़पूर्वक;ब्रह्मसंस्पर्शम् = परब्रह्म परमात्मा की प्राप्तिरूप; अत्यन्तम् = अनन्त; सुखम् = आनन्द को; अश्नुते =अनुभव करता है
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