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११:०२, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-39 / Gita Chapter-6 Verse-39
प्रसंग-
अर्जुन ने यह बात पूछी थी कि वह योग से विचलित हुआ साधक उभयभ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता ? भगवान् अब उसका उत्तर देते हैं-
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: ।
त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्रुपपद्यते ।।39।।
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हे श्रीकृष्ण ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।।39।।
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Krishna, it behoves you to slash this doubt of mine completely; for none other than you can be found, who can tear this doubt. (39)
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कृष्ण = हे कृष्ण ; मे = मेरे ; एतत् = इस ; संशयम् = संशय को ; अशेषत: = संपूर्णता से ; छेत्तुम् = छेदन करने के लिये (आप ही) ; अर्हसि = योग्य हैं ; हि = क्योंकि ; त्वदन्य: = आपके सिवाय दूसरा ; अस्य = इस ; संशयस्य = संशयका ; छेत्ता = छेदन करने वाला ; न उपपद्यते = मिलना संभव नहीं है
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