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− | '''अधिभूतं क्षरो भाव: | + | '''अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् ।'''<br/> |
'''अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ।।4।।''' | '''अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ।।4।।''' | ||
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− | उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय | + | उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इस शरीर में मैं <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">वासुदेव</balloon> ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ ।।4।। | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इस शरीर में मैं <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">वासुदेव</balloon> ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ ।।4।। | ||
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− | क्षर:भाव: = उत्पत्ति विनाश धर्मवाले सब पदार्थ ; | + | क्षर:भाव: = उत्पत्ति विनाश धर्मवाले सब पदार्थ ; पुरुष: = हिरण्यमय पुरुष ; अधिदैवतम् = अधिदैव है (और) ; देहभृताम् वर = हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ; अधिभूतम् = अधिभूत हैं ; च = और ; अत्र = इस ; देहे = शरीर में ; अहम् = मैं वासुदेव ; एव = ही (विष्णुरूप से) ; अधियज्ञ: = अधियज्ञ हूं |
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१२:५०, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-8 श्लोक-4 / Gita Chapter-8 Verse-4
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