गीता 9:9

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गीता अध्याय-9 श्लोक-9 / Gita Chapter-9 Verse-9

प्रसंग-


इस प्रकार जगत्- रचनादि समस्त कर्म करते हुए भी भगवान् उन कर्मों के बन्धन में क्यों नहीं पड़ते, अब यही तत्व समझाने के लिये भगवान् कहते हैं-


न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय ।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ।।9।।



हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! उन कर्मों में आसक्ति रहित और उदासीन के सदृश स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बाँधते ।।9।।

Arjuna, those actions, however, do not bind me, unattached as I am to such actions and standing apart as it were. (9)


धनंजय = हे अर्जुन ; तेषु = उन ; कर्मसु = कर्मों में ; असक्तम् = आसक्तिरहित ; च = और ; उदासीनवत् = उदासीन के सद्य्श ; आसीनम् = स्थित हुए ; माम् = मुझ परमात्मा को ; तानि = वे ; कर्माणि = कर्म ; न = नहीं ; निबन्धन्ति = बांधते हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

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