"गीता 15:16" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | अब अध्याय की समाप्ति तक पूर्वाक्त तीनों प्रकरणों का सार संक्षेप में बतलाने के लिये अगले श्लोक में क्षर और अक्षर | + | अब अध्याय की समाप्ति तक पूर्वाक्त तीनों प्रकरणों का सार संक्षेप में बतलाने के लिये अगले श्लोक में क्षर और अक्षर पुरुष का स्वरूप बतलाते हैं |
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− | '''द्वाविमौ | + | '''द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।'''<br /> |
'''क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ।।16।।''' | '''क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ।।16।।''' | ||
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− | इस संसार में नाशवान् और अविनाशी भी, ये दो प्रकार के | + | इस संसार में नाशवान् और अविनाशी भी, ये दो प्रकार के पुरुष हैं । इनमें सम्पूर्ण भूत प्राणियों के शरीर तो नाशवान् और जीवात्मा को अविनाशी कहा जाता है ।।16।। |
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− | लोके = इस संसार में ; क्षर: = नाशवान् ; च = और ; अक्षर: = अविनाशी ; एव = भी ; इमौ = यह ; द्वौ = दो प्रकार के ; | + | लोके = इस संसार में ; क्षर: = नाशवान् ; च = और ; अक्षर: = अविनाशी ; एव = भी ; इमौ = यह ; द्वौ = दो प्रकार के ; पुरुषौ = पुरुष हैं (उनमें) ; सर्वाणि = संपूर्ण ; भूतानि = भूतप्राणियों के शरीर तो ; क्षर: = नाशवान् ; च = और ; कूटस्थ: = जीवात्मा ; अक्षर: = अविनाशी ; उच्यते = कहा जाता है ; |
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१२:२३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-15 श्लोक-16 / Gita Chapter-15 Verse-16
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