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गीता अध्याय-3 श्लोक-32 / Gita Chapter-3 Verse-32
प्रसंग-
पूर्व श्लोक में यह बात कही गयी कि भगवान् के मन के अनुसार न चलने वाला नष्ट हो जाता है; इस पर यह जिज्ञासा होती है कि यदि कोई भगवान् के मन के अनुसार कर्म न करके हठपूर्वक कर्मों का सर्वथा त्याग कर दे तो क्या हानि है ? इस पर कहते हैं-
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतस: ।।32।।
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परंतु जो मनुष्य मुझ में दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझ ।।32।।
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They, however, who, finding fault with this teaching of Mine, do not follow it, take those fools to be deluded in the matter of all knowledge, and lost.(32)
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तु = और; ये = जो; अभ्यसूयन्त: = दोषदृष्टि वाले; अचेतस: = मूर्खलोग; एतत् = इस; मतम् = मत के; नअनुतिष्ठान्ति = अनुसार नहीं बर्तते हैं; तान् = उन; सर्वज्ञान विमूढान् = संपूर्ण ज्ञानों में मोहित चित्तवालों को; नष्टान् = कल्याण से भ्रष्ट हुए; विद्वि = जान|-
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