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'''पञ्चदशोऽध्याय:-''' | '''पञ्चदशोऽध्याय:-''' | ||
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− | इस अध्याय में सम्पूर्ण जगत् के कर्ता-हर्ता 'सर्वशक्तिमान्' सबके नियन्ता, सर्वव्यापी, अन्तर्यामी, परम दयालु, सबके सुहृद, सर्वाधार, शरण लेने योग्य, सगुण परमेश्वर | + | इस अध्याय में सम्पूर्ण जगत् के कर्ता-हर्ता 'सर्वशक्तिमान्' सबके नियन्ता, सर्वव्यापी, अन्तर्यामी, परम दयालु, सबके सुहृद, सर्वाधार, शरण लेने योग्य, सगुण परमेश्वर पुरुषोत्तम भगवान् के गुण, प्रभाव और स्वरूप का वर्णन किया गया है । एवं क्षर पुरुष(क्षेत्र), अक्षर पुरुष(क्षेत्रज्ञ) और पुरुषोत्तम(परमेश्वर)- इन तीनों का वर्णन करके, क्षर और अक्षर से भगवान् किस प्रकार उत्तम हैं, वे किसलिए 'पुरुषोत्तम' कहलाते हैं, उनको पुरुषोत्तम जानने का क्या महात्म्य है और किस प्रकार उनको प्राप्त किया जा सकता है- इत्यादि विषय भलीभाँति समझाये गये हैं । इसी कारण इस अध्याय का नाम 'पुरुषोत्तमयोग' रखा गया है । |
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | अब उस सगुण परमेश्वर | + | अब उस सगुण परमेश्वर पुरुषोत्तम भगवान् के गुण, प्रभाव और स्वरूप का एवं गुणों से अतीत होने में प्रधान साधन वैराग्य और भगवत् शरणागति का वर्णन करने के लिये पंद्रहवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है । यहाँ पहले संसार में वैराग्य उत्पन्न कराने के उद्देश्य से तीन श्लोकों द्वारा संसार का वर्णन वृक्ष के रूप में करते हुए वैराग्य रूप शस्त्र द्वारा उसका छेदन करने के लिये कहते हैं- |
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'''श्रीभगवान् बोले-''' | '''श्रीभगवान् बोले-''' | ||
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− | आदि | + | आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्म रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं; तथा <balloon link="index.php?title=वेद" title="वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई । |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">वेद</balloon> जिसके पत्ते कहे गये हैं- उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है ।।1।। | ||
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− | ऊर्ध्वभूलम् = | + | ऊर्ध्वभूलम् = आदिपुरुष परमेश्वररूप भूलवाले (और ) ;अश्र्वत्थम् = संसाररूप पीपल के वृक्ष को ; अव्ययम् = अविनाशी ; प्राहु: = कहते है (तथा) ; यस्य = जिसके ; छन्दांसि = वेद ; पर्णानि = पत्ते (कहे गये हैं) ; अध:शाखम् = ब्रह्मारूप मुख्य शाखावाले (जिस); तम् = उस संसाररूप वृक्ष को ; य: = जो पुरुष (मूलसहित) ; वेद = तत्त्व से जानता है ; स: = वह ; वेदवित् = वेद के तात्पर्य को जानने वाला है ; |
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१२:२३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-15 श्लोक-1 / Gita Chapter-15 Verse-1
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