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गीता अध्याय-15 श्लोक-7 / Gita Chapter-15 Verse-7
प्रसंग-
उपर्युक्त प्रकार से बँधे हुए जीव का क्या स्वरूप है ? और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है ? उसे कौन कैसे जानता है ? अत: इन सब बातों का स्पष्टीकरण करने के लिये पहले जीव का स्वरूप बतलाते हैं-
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: ।
मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ।।7।।
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इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।।7।।
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The living entities in this conditioned world are My eternal, fragmental parts. Due to conditioned life, they are struggling very hard with the six senses, which include the mind.(7)
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जीवलोके = इस देह में ; जीवभूत: = यह जीवात्मा ; मम = मेरा (और वही इन) ; प्रकृतिस्थानि = त्रिगुणमयी माया में स्थित हुई ; एव = ही ; सनातन: = सनातन ; अंश:= अंश है ; मन:षष्ठानि = मनसहित पांचों ; इन्द्रियाणि = इन्द्रियों को ; कर्षति = आकर्षण करता है ;
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