"गीता 3:6" के अवतरणों में अंतर
Deepak Sharma (चर्चा | योगदान) |
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'''कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।'''<br /> | '''कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।'''<br /> | ||
− | ''' | + | '''इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते ।।6।।''' |
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− | जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का | + | जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।।6।। |
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− | य: = जो ; विमूढात्मा = मूढबुद्धि | + | य: = जो ; विमूढात्मा = मूढबुद्धि पुरुष ; कर्मेन्द्रियाणि = कर्मेन्द्रियोंको (हठसे) ; संयम्य = रोककर ; इन्द्रियार्थान् = इन्द्रियों के भोगोंको ; मनसा = मनसे ; स्मरन् = चिन्तन करता ; आस्ते = रहता है ; स: = वह ; मिथ्याचार: = मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी ; उच्यते = कहा जाता है ; |
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१२:३६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-6 / Gita Chapter-3 Verse-6
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