"गीता 4:1" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | अब | + | अब भगवान पुन: उसके सम्बन्ध में बहुत-सी बातें बतलाने के उद्देश्य से उसी का प्रकरण आरम्भ करते हुए पहले तीन श्लोकों में उस कर्मयोग की परम्परा बतलाकर उसकी अनादिता सिद्ध करते हुए प्रशंसा करते हैं- |
यहाँ 'ज्ञान' शब्द परमार्थ-ज्ञान अर्थात् तत्व ज्ञान का, 'कर्म' शब्द कर्मयोग अर्थात् योग मार्ग का और 'संन्यास' का शब्द सांख्ययोग अर्थात् ज्ञान मार्ग का वाचक है; विवेकज्ञान और शास्त्रज्ञान भी 'ज्ञान' शब्द के अन्तर्गत हैं । इस चौथे अध्याय में भगवान् ने अपने अवतरित होने के रहस्य और तत्व सहित कर्मयोग तथा संन्यास योग का और इन सबके फलस्वरूप जो परमात्मा का तत्व यथार्थ ज्ञान है, उसका वर्णन किया है; इसलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञानकर्म-संन्यास योग' रखा गया है । | यहाँ 'ज्ञान' शब्द परमार्थ-ज्ञान अर्थात् तत्व ज्ञान का, 'कर्म' शब्द कर्मयोग अर्थात् योग मार्ग का और 'संन्यास' का शब्द सांख्ययोग अर्थात् ज्ञान मार्ग का वाचक है; विवेकज्ञान और शास्त्रज्ञान भी 'ज्ञान' शब्द के अन्तर्गत हैं । इस चौथे अध्याय में भगवान् ने अपने अवतरित होने के रहस्य और तत्व सहित कर्मयोग तथा संन्यास योग का और इन सबके फलस्वरूप जो परमात्मा का तत्व यथार्थ ज्ञान है, उसका वर्णन किया है; इसलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञानकर्म-संन्यास योग' रखा गया है । | ||
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'''श्री भगवान् बोले-''' | '''श्री भगवान् बोले-''' | ||
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− | मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, | + | मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, <balloon link="index.php?title=सूर्य" title="सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">सूर्य</balloon> ने अपने पुत्र <balloon link="index.php?title=वैवस्वत" title="महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख है। इनमें से वैवस्वत मनु का संबंध कामायनी के नायक से जोड़ा जा सकता है। | ||
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">वैवस्वत मनु </balloon> से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा <balloon link="index.php?title=इक्ष्वाकु" title="इक्ष्वाकु अयोध्या के राजा थे, इन्होंने ही अयोध्या में कोशल राज्य की स्थापना की थी। | ||
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">इक्ष्वाकु</balloon> से कहा ।।1।। | ||
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०९:०१, ७ अप्रैल २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-4 श्लोक-1 / Gita Chapter-4 Verse-1
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