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गीता अध्याय-2 श्लोक-66/ Gita Chapter-2 Verse-66
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् ।।66।।
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न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ?।।66।।
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He who has not controlled his mind and senses can have no reason; nor can such an undisciplined man think of God. the unthinking man can have no peace; and how can there be happiness for one lacking peace of mind. ?(66)
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अयुक्तस्य = साधनरहित पुरुषके (अन्त:करणमें) ; बुद्धि: = श्रेष्ठ बुद्धि ; न = नहीं ; अस्ति = होती है ; च = और (उस) ; अयुक्तस्य = अयुक्तके (अन्त:करणमें) ; न = नहीं (होती) (फिर) ; अशान्तस्य = शान्तिरहित पुरुषको ; भावना = आस्तिकभाव भी ; न = नहीं होता है (और) ; अभावयत: = बिना आस्तिकभाववाले पुरुषको ; शान्ति: = शान्ति ; च = भी ; सुखम् = सुख ; कुत: = कैसे (हो सकता है)
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