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| + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और न ही पण्डितों के से वचनों को कहता है, परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते ।।11।। |
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१२:३३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-11 / Gita Chapter-2 Verse-11
प्रसंग-
भगवान् आत्मा की नित्यता का प्रतिपादन करके आत्मदृष्टि से उनके लिये शोक करना अनुचित सिद्ध करते हैं-
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ।।11।।
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श्रीभगवान् बोले
हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और न ही पण्डितों के से वचनों को कहता है, परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते ।।11।।
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Sri Bhagavan said:
Arjuna, you grieve over those who should not be grieved for, and yet speak like the learned, wise men do not sorrow over the dead or the living.(11)
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त्वम् = तूं ; अशोच्यान् = न शोक करने योग्योंके लिये ; अन्वशोच: = शोक करता है ; च = और ; प्रज्ञावादान् = पण्डितोंके (से) वचनोंको ; भाषसे = कहता है (परन्तु) ; पण्डिता: = पण्डितजन ; गतासून् = जिनके प्राण चले गये हैं उनके लिये ; च = और ; अगतासून् = जिनके प्राण नहीं गये हैं उनके लिये (भी) ; न = नहीं ; अनुशोचन्ति = शोक करते हैं ;
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