"गीता 2:15" के अवतरणों में अंतर
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इस श्लोक में भगवान् नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन की रीति बतलाने के लिये दोनों के लक्षण बतलाते हैं- | इस श्लोक में भगवान् नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन की रीति बतलाने के लिये दोनों के लक्षण बतलाते हैं- | ||
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+ | '''यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।'''<br/> | ||
+ | '''समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।15।।''' | ||
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− | क्योंकि हे | + | क्योंकि हे पुरुष श्रेष्ठ ! दु:ख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये [[इन्द्रियां]] और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है ।।15।। |
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− | + | Arjuna, the wise man to whom pain and pleasure are alike, and who is not tormented by these contacts, becomes eligible for immortality.(15). | |
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− | हि = क्योंकि ; | + | हि = क्योंकि ; पुरुषश्रेष्ठ ; समदु:खसुखम् = दु:खसुखको समान समझनेवाले ; यम् = जिस ; धीरम् = धीर ; पुरुषम् = पुरुषको ; एते = यह (इन्द्रियों के विषय) ; न व्यथयन्ति = व्याकुल नहीं कर सकते ; स: = वह ; अमृतत्वाय: = मोक्षके लिये ; कल्पते = योग्य होता है ; |
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१२:३३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-15 / Gita Chapter-2 Verse-15
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