"गीता 2:17" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>')
 
(५ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ९ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{menu}}<br />
+
{{menu}}
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<tr>
 
<tr>
पंक्ति १०: पंक्ति १०:
 
----
 
----
 
इस प्रकार 'सत्' तत्व की व्याख्या हो जाने के अनन्तर पूर्वोक्त 'असत्' वस्तु क्या है, इस जिज्ञासा पर कहते हैं-  
 
इस प्रकार 'सत्' तत्व की व्याख्या हो जाने के अनन्तर पूर्वोक्त 'असत्' वस्तु क्या है, इस जिज्ञासा पर कहते हैं-  
 
''''अविनाशि तु तद्विद्वि येन सर्वमिदं ततम् ।''''
 
''''विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।।17।।''''
 
 
----
 
----
 +
<div align="center">
 +
'''अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।'''<br/>
 +
'''विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।।17।।'''
 +
----
 +
</div>
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति २१: पंक्ति २३:
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
----
 
----
नाशरहित तो तू उसको ज्ञान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्य वर्ग व्याप्त है । इस अविनाशीका विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।।17।।
+
नाशरहित तो तू उसको ज्ञान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्य वर्ग व्याप्त है । इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।।17।।
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
----
 
----
Know that alone  to be imperishable, which pervades this universe; for no one has power to destroy this indestructible substance.(17)
+
Know that alone  to be imperishable, which pervades this universe, for no one has power to destroy this indestructible substance.(17)
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ३७: पंक्ति ३९:
 
</td>
 
</td>
 
</tr>
 
</tr>
</table>
+
<tr>
 +
<td>
 +
<br />
 +
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:16|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:18|आगे Next =>]]'''</div>
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
<br />
 
{{गीता अध्याय 2}}
 
{{गीता अध्याय 2}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{गीता2}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{महाभारत}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
</table>
 +
[[Category:गीता]]
 +
__INDEX__

१२:३३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-2 श्लोक-17 / Gita Chapter-2 Verse-17

प्रसंग-


इस प्रकार 'सत्' तत्व की व्याख्या हो जाने के अनन्तर पूर्वोक्त 'असत्' वस्तु क्या है, इस जिज्ञासा पर कहते हैं-


अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।।17।।




नाशरहित तो तू उसको ज्ञान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्य वर्ग व्याप्त है । इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।।17।।


Know that alone to be imperishable, which pervades this universe, for no one has power to destroy this indestructible substance.(17)


अविनाशि = नाशरहित ; तु = तो ; तत् = उसको ; विद्धि = जान (कि) ; येन = जिससे ; इदम् = यह ; सर्वम् = संपूर्ण (जगत्) ; ततम् = व्याप्त है (क्योंकि); अस्य = इस ; अव्ययस्य = अविनाशीका ; विनाशम् = विनाश ; कर्तुम् = करनेको ; कश्र्चित् = कोई भी ; न अर्हति = समर्थ नहीं है ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>