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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | भगवान् के इस प्रकार कहने पर | + | भगवान् के इस प्रकार कहने पर गुरुजनों के साथ किये जाने वाले युद्ध को अनुचित सिद्ध करते हुए दो श्लोकों में अर्जुन अपना निश्चय प्रकट करते हैं- |
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− | ''' | + | '''क्लैव्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।'''<br /> |
− | '''क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ | + | '''क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप ।।3।।''' |
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− | इसलिये हे | + | इसलिये हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे <balloon title="पार्थ, भारत, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">परन्तप</balloon> ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।3।। | ||
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− | Yield not to unmanliness, | + | Yield not to unmanliness, Arjuna ill does it become you. shaking off this paltry faint-heartedness stand up, O scorcher of enemies.(3) |
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− | पार्थ = हे अर्जुन ; | + | पार्थ = हे अर्जुन ; क्लैव्यम् = नपुंसकताको ; मा स्म गम: = मत प्राप्त हो; एतत् = यह ; त्वयि = तेरेमें ; न उपपद्यते = योग्य नहीं है ; परंतप = हे परंतप ; क्षुद्रम् = तुच्छ ; ह्रदय दौर्बल्यम् = ह्रदयकी दुर्बलताको ; त्यक्त्वा = त्यागकर ; उत्तिष्ठ = युद्ध के लिये खडा हो ; |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:2|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:4|आगे Next =>'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:2|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:4|आगे Next =>]]'''</div> |
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१२:३३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-3 / Gita Chapter-2 Verse-3
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