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१२:३४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-36 / Gita Chapter-2 Verse-36
प्रसंग-
उपर्युक्त बहुत से हेतुओं को दिखलाकर युद्ध न करने में अनेक प्रकार की हानियों का वर्णन करने के बाद अब भगवान् युद्ध करने में दोनों तरह से लाभ दिखलाते हुए <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा देते हैं-
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता: ।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दु:खतरं नु किम् ।।36।।
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तेरे दुश्मन लोग तेरे सामर्थ्य की निन्दा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे, उससे अधिक दु:ख और क्या होगा ।।36।।
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And your enemies, disparaging your might, will speak many unbecoming words; what can be more distressing than this ? (36)
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च = और ; तव = तेरे ; अहिता: = बैरी लोग ; तव = तेरे ; सामर्थ्यकी = सामर्थ्यकी ; निन्दन्त: = निन्दा करते हुए ; बहून् = बहुतसे ; अवाच्यवादान् = न कहने योग्य वचनोंको ; वदिष्यन्ति = कहेंगे ; नु = फिर ; तत: = उससे ; दु:खतरम् अधकि दु:ख ; किम् = क्या होगा
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