"गीता 2:40" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | इस प्रकार कर्मयोग का महत्व बतलाकर अब उसके आचरण की विधि बतलाने के लिये पहले उस कर्मयोग में परम आवश्यक जो सिद्ध कर्मयोगी की निश्चयात्मिका स्थायी समबुद्धि है, उसका और कर्मयोग में बाधक जो सकाम मनुष्यों की | + | इस प्रकार कर्मयोग का महत्व बतलाकर अब उसके आचरण की विधि बतलाने के लिये पहले उस कर्मयोग में परम आवश्यक जो सिद्ध कर्मयोगी की निश्चयात्मिका स्थायी समबुद्धि है, उसका और कर्मयोग में बाधक जो सकाम मनुष्यों की भिन्न-भिन्न बुद्धियाँ हैं, उनका भेद बतलाते हैं- |
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− | इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात् बीज | + | इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात् बीज का नाश नहीं है और उलटा फलस्वरूप दोष भी नहीं है; बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप महान भय से रक्षा कर लेता है ।।40।। |
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− | इह = इस निष्काम कर्मयोगमें ; अस्ति = है (और) ; प्रत्यवाय: = उलटाफलरूप दोष (भी) ; विद्यते = होता है (इसलिये) ; अस्य = इस (निष्काम कर्मयोगरूप) ;अभि क्रमनाश: = आरम्भका अर्थात् बीजका नाश ; धर्मस्य = धर्मका ; स्वल्पम् = थोडा ; अपि = भी (साधन) ; महत: = जन्ममृत्युरूप | + | इह = इस निष्काम कर्मयोगमें ; अस्ति = है (और) ; प्रत्यवाय: = उलटाफलरूप दोष (भी) ; विद्यते = होता है (इसलिये) ; अस्य = इस (निष्काम कर्मयोगरूप) ;अभि क्रमनाश: = आरम्भका अर्थात् बीजका नाश ; धर्मस्य = धर्मका ; स्वल्पम् = थोडा ; अपि = भी (साधन) ; महत: = जन्ममृत्युरूप महान ; भयात् = भयसे ; त्रायते = उद्धार कर देता है| |
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१२:३४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-40 / Gita Chapter-2 Verse-40
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