"गीता 2:65" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते ।'''<br/> | '''प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते ।'''<br/> | ||
− | ''' | + | '''प्रसन्नचेतसो ह्राशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ।।65।।''' |
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− | अन्त:करण की | + | अन्त:करण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दु:खों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँति स्थिर हो जाती है ।।65।। |
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− | प्रसादे = निर्मलतके होनेपर ; अस्य = इसके ; सर्वदु:खानाम् = संपूर्ण दु:खोंका ; हानि: = अभाव ; उपजायते = हो जाता है (और उस) ; प्रसन्नचेतस: = प्रसन्नचित्तवाले | + | प्रसादे = निर्मलतके होनेपर ; अस्य = इसके ; सर्वदु:खानाम् = संपूर्ण दु:खोंका ; हानि: = अभाव ; उपजायते = हो जाता है (और उस) ; प्रसन्नचेतस: = प्रसन्नचित्तवाले पुरुषकी ; बुद्धि: = बुद्धि ; आशु = शीघ्र ; हि = ही ; पर्यवतिष्ठते = अच्छी प्रकार स्थिर हो जाती है |
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१२:३४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-65 / Gita Chapter-2 Verse-65
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