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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | स्थितप्रज्ञ कैसे चलता है ? | + | स्थितप्रज्ञ कैसे चलता है ? <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> का यह चौथा प्रश्न परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के विषय में ही था; किंतु यह प्रश्न आचरण विषयक होने के कारण उसके उत्तर में श्लोक चौसठ से यहाँ तक किस प्रकार आचरण करने वाला मनुष्य शीघ्र स्थितप्रज्ञ बन सकता है, कौन नहीं बन सकता और जब मनुष्य स्थितप्रज्ञ हो जाता है उस समय उसकी कैसी स्थिति होती है- ये बातें बतलायी गयीं । अब उस चौथे प्रश्न का स्पष्ट उत्तर देते हुए स्थितप्रज्ञ पुरुष के आचरण का प्रकार बतलाते हैं- | ||
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− | '''आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् ।'''<br/> | + | '''आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं'''<br/> |
− | '''तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न | + | ''' समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् ।'''<br/> |
+ | '''तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे'''<br/> | ||
+ | '''स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।70।।''' | ||
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− | जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण , अचल प्रतिष्ठा वाले, समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ | + | जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण, अचल प्रतिष्ठा वाले, समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं ।।70।। |
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− | यद्वत् = जैसे ; आपूर्यमाणम् = सब ओरसे परिपूर्ण ; अचलप्रतिष्ठम् = अचल प्रतिष्ठावाले ; समुद्रम् = समुद्रके प्रति ; आप: = नाना नदियोंके जल (उसको चलायमान न करते हुए ही) ; प्रविशन्ति = समा जाते है ; स: = वह ( | + | यद्वत् = जैसे ; आपूर्यमाणम् = सब ओरसे परिपूर्ण ; अचलप्रतिष्ठम् = अचल प्रतिष्ठावाले ; समुद्रम् = समुद्रके प्रति ; आप: = नाना नदियोंके जल (उसको चलायमान न करते हुए ही) ; प्रविशन्ति = समा जाते है ; स: = वह (पुरुष) ; शान्तिम् = परम शान्तिको ; आप्रोति = प्राप्त होता है ; प्रविशन्ति = समा जाते हैं ; तद्वत् = वैसे ही ; यम् = जिस (स्थिरबुद्धि) पुरुषके प्रति ; सर्वे = संपूर्ण ; कामा: = भोग ; (किसी प्रकारका विकार उत्पन्न किये बिना ही) ; न = न कि ; कामकाभी = भोगोंको चाहनेवाला |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-2 श्लोक-70 / Gita Chapter-2 Verse-70
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